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कविता

अनुभव के लिए कोई शब्द

विशाल श्रीवास्तव


इस दिनोंदिन शहर होते जाते 
कस्बे के भीड़ भरे बाजार से गुजरते हुए
मैं खालीपन जैसे अनुभव के लिए
कोई शब्द खोजना चाहता हूँ
सन्नाटे से भी ज्यादा मौलिक और विशुद्ध
जबकि इस खालीपन जैसी चीज के भीतर
कुछ समय के हिस्से हैं, जिनमें
टुकड़ा-टुकड़ा विचार की तरह बसी हुई है दुनिया
शहर की सबसे बढ़िया सड़क पर चलते हुए
इस सबसे सुंदर दुनिया के बारे में
सबसे बेकार बातें सोचते हुए कि
दुनिया किसी पुराने खंडहर का अस्पष्ट शिलालेख
किसी सहज सी कविता का बेहद उलझा हुआ पाठ
जैसे दुनिया कोई न जाने लायक जगह
जब एक खालिस अनुभव के लिए
मैं कोई ठोस शब्द ढालना चाहता हूँ
तो शब्द क्या, आवाज तक नहीं मिलती
चीजों को जाने बिना उनको खोजने की 
इस असफलता में विचार के खाली कागज पर 
इस अनुभव के सामने अपनी बेबसी जैसा 
सहमा हुआ कोई शब्द रखना चाहता हूँ ।
 

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